वात्सल्य
वात्सल्य
उसका कोई मोल नहीं जो, वात्सल्य बहाती माता है
चाहे नर हो या नारायण, उऋण न कोई होता है।
तोल सके ना राजा-महराजा, छीन सका न लुटेरा
प्रकृति का उपहार अनोखा, वात्सल्य अलौकिक होता है।
जिसको हम पशु-पक्षी कहते, और निरादर भी करते हैं
मानवीय विवेक को बेहतर, उनको तुच्छ समझते हैं।
'वीनू' तुलना में बेहतर, पशु-पक्षी ही क्यूँ होते हैं
शिशु जन्म समय जिह्वा से चाट, वात्सल्य प्रदर्शित करते हैं।
जब तक शिशु अपने पैरों पर, खड़े नहीं हो जाते हैं
जन्म से लेकर पालन-पोषण, और सुरक्षा करते हैं।
जब शिशु उड़ने या चलने, लायक उनके बन जाते हैं
नील गगन तले विचरण को, तब स्वतंत्र कर देते हैं।
