उसकी एक झलक
उसकी एक झलक
वो एक झलक
खूबसूरत - सी, प्यारी - सी
जिसे देखने के लिए हम बेकरार थे
सुबह से शाम तक बस
उनके ही खयालों में खोते थे
वो एक झलक,
जिसके लिए हम तरसते थे
भूखे - प्यासे उनके लिए भटकते थे
वो एक झलक,
जैसे की सूरज की पहली किरण
जैसे की चाँद की रोशनी
जैसे की फूलों की महक
न जाने पर क्यों,
हमारा दिल उसके
एक झलक का दीवाना था
बस, उसकी एक मासूम - सी
मुस्कुराहट का प्यासा था
पूरी कायनात उसके सामने झूठी थी
क्या जादू था,
उसकी वो एक झलक में,
वो तो रब ही जाने
उसकी वो नशीली आँखें
न जाने कुछ तो कहना चाहती थीं,
पर फिर भी क्यों इतराती थीं
आज बरसों हो गए
उसकी वो झलक
अपने दिल में समाए हुए
हम जिंदगी गुजार रहे है
आज भी भटकते है हम
उसकी एक झलक के लिए
शायद किसी नदी - किनारे
गली - मोहल्ले में,
हमें एक बार वो दिख जाए
पर ऐसा कभी होगा नहीं
फिर भी यह दिल मानता नहीं
बैठा है, आज भी इंतजार में,
उसकी एक झलक ख़्वाहिश में

