उसकी बनाई चाय
उसकी बनाई चाय
हर हफ्ते मिलने का मैं एक प्लान बनाता हूँ,
उसकी बनाई चाय को मैं बवाल बताता हूँ।
मुरझायी-सी कली को मैं कुछ यूँ सराहता हूँ,
साड़ी में लिपटी मूरत को मैं जान बताता हूँ।
कभी कभी सपने में उसके जाकर आता हूँ,
दिल नहीं लगता तेरे बिना मैं उसे बताता हूँ।
वो दिन भर तरसे मेरे लिये मैं ऐसा भाता हूं,
वो मन्दिर जाये मेरे लिये मैं ऐसा नाता हूँ।
बिखरे जो सूर थे अब मैं उनको ऐसे मिलाता हूँ
'अब ना नजर लगे तेरी सुरत को' मैं ऐसा गाता हूँ।
जाते हुये उसके घर से मैं फिर कह जाता हूँ,
उसकी बनाई चाय को मैं बवाल बताता हूँ।