उफ! ये गर्मी
उफ! ये गर्मी
आज न कुछ करने को मन है
झुलसी धरा, थका- सा मन है
जंगल दावानल ग्रसित हैं
पंछी आतुर, विकल पथिक हैं
सूखे पोखर, ताल, नदी सब
वसुधा का सौंदर्य उड़ा अब
इंद्रदेव क्यों क्रुद्ध हुए हैं?
मेघ भी नभ से लुप्त हुए हैं।
ठंडी बयार कहीं गुम हो गई
कलियाँ तप्त हो झुलस गयीं
सूखे फल सब और मोसम्मी।
उफ! ये गर्मी, उफ! ये गर्मी
अरुण देव को चढ़ी जवानी
करते हैं अपनी मनमानी
प्रातः से आंख दिखाते
निज रश्मियों से स्वेद बहाते
मची है जल की त्राहि- त्राहि
चारों ओर मची तबाही
मेघ गगन में ज्यों ही आते
हवा से डर झट भाग जाते
हाय! उमस है बड़ी निकम्मी
उफ! ये गर्मी, उफ! ये गर्मी..
कठिन हो चला अब तो भय्या
निज कर्मों को भी निपटाना
बच्चे- बूढ़े विवश हुए सब
स्कूल हो कैसे आना- जाना?
फुर्ती तन की लुप्त हो गई
भूख भी यारों, गुप्त हो गई।
आलस ने आ सबको घेरा
मक्खी, मच्छर करते डेरा
अस्पताल में गहमागहमी
उफ! ये गर्मी उफ! ये गर्मी..
