उम्र की दस्तक
उम्र की दस्तक
आज उम्र ने चुपके से आकर
दी दस्तक द्वार खड़का कर
घबरा कर मैंने आईना देखा
झाँकी सफेदी मुझे मुँह चिढ़ा कर
माथे के बल भी हुए गहरे
देखा खुद को आज नजर भर
अजब उदासी मन में छाई
क्या हूँ वृद्धावस्था सफर पर
पुनः जो दस्तक पड़ी सुनाई
मैने चौंक के दर्पण देखा
इक प्रतिबिंब नजर आया फिर
भोले से बालक के सरीखा
उस बालक ने कहा जो मुझसे
पल में दूर हुई मेरी चिन्ता
तुझे बुढ़ापा छू भी न पाए
जब तक मैं हूँ तेरे मन बसा
वृद्धावस्था के लक्षण तो
गौरवयात्रा की हैं निशानी
तुम हो इक जीवन यात्रा पर
ये काया इक दिन ढल जानी
बात तो तब है मन के भीतर
नन्हा बालक सोने न पाए
बच्चों सी निश्छल चंचलता
तेरे हृदय से खोने न पाए.