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AVINASH KUMAR

Inspirational

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AVINASH KUMAR

Inspirational

उम्र की डोर से फ़िर एक मोती

उम्र की डोर से फ़िर एक मोती

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उम्र की डोर से फ़िर 

एक मोती झड़ रहा है ,

तारीख़ों के जीने से 

दिसम्बर फ़िर उतर रहा है ...


कुछ चेहरे घटे, चन्द यादें 

जुड़ गयी वक़्त में ,

उम्र का पंछी नित दूर और 

दूर निकल रहा है ...


गुनगुनी धूप और ठिठुरी 

रातें जाड़ों की,

गुज़रे लम्हों पर झीना झीना सा

इक़ पर्दा गिर रहा है ...


ज़ायका लिया नहीं और

फ़िसल गयी ज़िन्दगी ,

वक़्त है कि सब कुछ समेटे

बादल बन उड़ रहा है ...


फ़िर एक दिसम्बर गुज़र रहा है

बूढ़ा दिसम्बर जा रहा

नया साल क़दमों में दस्तक दे रहा ...

लो , इक्कीसवीं सदी को बाईसवां साल लग रहा है



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