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seema singh

Abstract

4  

seema singh

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उलझन

उलझन

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तुम रहोगे साथ तो हर उलझन मिट जायेगी,

ज़िंदगी में आने वाली हर मुशिकिल तेरे होते हमें छु भी नहीं पाएगी,

करेंगें तय उम्रभर साथ चलने का ये का सफ़र हम साथ तेरे,

तु है तो हर सपने को हम सच भी कर दिखलायेंगें,


रखना हमारी हथेलियों पे सदा अपना तू हाथ फिर तो हम इन अंधेरों

वाले रास्ते को भी अपनी चाहत की रोशनियों से जगमगा देंगें,

मगर हम डरते हैं इन दो पल की खुशियों से जो सिर्फ

सपना बन कुछ पलों के लिये हि हमारी ज़िंदगी में आती हैं,


और उसके बदले ना जाने हमारा कितना हि कुछ छीन कर नहीं ले जाती हैं,

मगर तु साथ है तो हमें इस बात का भी कोई गिला ना होगा की

हमने कभी क्या कुछ खोया था अपनी उस ज़िंदगी में जिसका

याद आना भी हमें आज चुभता ये उलझन हम नहीं चाहते कि तू

सामने हो और हम उन पुरानी उलझनों का शिकार बने रहें,


बस हम तो अब तेरे होके तेरे साथ इस ज़िंदगी के सफ़र को 

खुशनुमा बना इस पे युहीं उम्रभर चलते रहना चाहते हैं,

तेरे प्यार के मरहम से अपने हर दर्द को

ज़िंदगी भर के लिये भूल जाना चाहते हैं।   


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