माँ
माँ
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नींव रूप में सदा पिरोयी
बना महल और तू है खोयी,
नींव रूप दिखता ही कहाँ?
बगैर नींव टिकता ही कहाँ?
तू बाती भी तू ईंधन भी
तेरे जलने से मैं रोशन भी,
जिस नौका से मैं पार हुआ
उस नौका की पतवार है तू,
गिरने से मैं टूट गया यदि
तू दिखती उठ जाता हूँ मैं,
तू शिक्षक है तू रक्षक भी
पालनहार मेरी तू जन्नत भी,
तुझसे ही आबाद हुआ मैं
औक़ात नहीं मैं कर्ज़ निभाऊं,
तुझसे मैं ऊपर हो जाऊं
तेरी सेवा कर जीवन जी जाऊं
कदमों में मैं जन्नत पाऊं।