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Madhu Sosi

Abstract

3  

Madhu Sosi

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सूर्य का द्वार

सूर्य का द्वार

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सूर्य के द्वार पर  

धरती ने सजाई सोने की सुनहरी रंगोली 

लाखों करोड़ों सूरजमुखी,

टकटकी लगाए प्रतीक्षा करते

आराध्य देव की 


चकाचौंध आदित्य पधारा 

अद्वितीय भास्कर रश्मियों वाला 

देख -देख मुदित होते  

खिले --खिले चेहरे उचकाते  

हर पहर साथ रहते

जीवन-सुधा पीते- पाते   

चलते समय

ले आई थी


कागज़ की पुड़िया में

बंद कर

टुकड़ा ज़मीनी सूरज का

खोली मुठ्ठी , खोली पुडिया

देख कर थी हैरानी बड़ी


मुरझा गया था फूल

यद्यपि किन्तु गर्वित थी

दमयंती - काया सूखा था !

पर मुरझाया नही !


भूला नहीं आखिर तो था

 "सूर्य" उसका प्रणय देवता !


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