सूर्य का द्वार
सूर्य का द्वार
सूर्य के द्वार पर
धरती ने सजाई सोने की सुनहरी रंगोली
लाखों करोड़ों सूरजमुखी,
टकटकी लगाए प्रतीक्षा करते
आराध्य देव की
चकाचौंध आदित्य पधारा
अद्वितीय भास्कर रश्मियों वाला
देख -देख मुदित होते
खिले --खिले चेहरे उचकाते
हर पहर साथ रहते
जीवन-सुधा पीते- पाते
चलते समय
ले आई थी
कागज़ की पुड़िया में
बंद कर
टुकड़ा ज़मीनी सूरज का
खोली मुठ्ठी , खोली पुडिया
देख कर थी हैरानी बड़ी
मुरझा गया था फूल
यद्यपि किन्तु गर्वित थी
दमयंती - काया सूखा था !
पर मुरझाया नही !
भूला नहीं आखिर तो था
"सूर्य" उसका प्रणय देवता !