उलझन बनेगी आस
उलझन बनेगी आस
मन की उमंगे, कभी-कभी
रोक दी जाती हैं।
कोई हताहत नहीं होता पर,
रोक दी जाती हैं।।
चाहों और इच्छाओं पर,
कड़े पहरे लगा दिये जाते।
किसी पर आक्रमण नहीं,
पर दबा दिये जाते।।
कुछ अलग-थलग सा,
व्यवहार देखने को मिलता।
हर जगह समाज में,
कुछ विपरीत सा चलता।।
निगाहें खोजती रहती,
कुछ न कुछ, इधर-उधर।
कुछ न मिलता मुझे,
चाहे इस राह चलूं, या उस डगर।।
इन अनपेक्षित व्यवहारों से,
मन में कुंठा सी होती।
सब हैं एक से पर,
व्यवहार की शैली, अलग होती।।
क्या? केवल बदलेगा समाज,
या, वास्तव में बदलाव आएगा।
जहां पर, सब एक हो जाएं,
जीवन में, क्या वो पड़ाव आएगा?
