STORYMIRROR

Archana Verma

Tragedy

3  

Archana Verma

Tragedy

उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)

उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)

2 mins
956

आओ दिखाऊं तुम्हें अपनी

चमचमाती कार

जिस के लिए ले रखा है मैंने उधार 


दिखावे और प्रतिस्पर्धा में घिर चूका हूँ ऐसे 

समझ में नहीं आता कब कहाँ और कैसे 

किसी के पास कुछ देख के 

लेने की ज़िद करता हूँ एक बच्चे के जैसे 

और फिर पूरा करता हूँ उधार के पैसे 

कटवा के अपना वेतन हर बार 


आओ दिखाऊं तुम्हें अपना घर द्वार 

जिसके लिए मेरा रूआ रूआ

है कर्ज़दार 

घर को सजा रखा है मैंने ऐसे 

किसी राजा के राज महल जैसे 

इस ऊपरी छलावे से औरों को

लुभाने के लिए 

मेरा वेतन ख़त्म हो जाता है

बीच महीने बार-बार


आओ दिखाऊँ तुम्हें अपना

खाता विवरण 

जो है इस पूरी कविता का सार 

मैं बस कमाता रहा और शौक

पे लुटाता रहा

इस चक्कर में भूल गया जीना 

वो छोटी छोटी बात 

जिनसे कभी मन को खुश रखता था 

कभी दोस्तों में उठता बैठता तो 

कविता करता, हास्य - व्यंग्य करता था 

आज जब कभी मिलते हैं दोस्त वो पुराने 

तो एक प्रतिस्पर्धा सी रहती है 

किसी जीवन में क्या नया है 

ये जानने की आतुरता रहती है 

 

फिर ज़िद्द कर बैठता हूँ उस जीवन

को अपनाने के लिए 

थोड़ा और क़र्ज़ ले कर अपने को

सामानांतर दिखाने के लिए

ये ज़रूरी नहीं की उसकी

सम्पन्नता उधार से आई  हो

शायद उसने वो कड़ी मेहनत 

से कमाई हो 

कई दिन भूखा रहा हो तब जा

के रोटी खाई हो

न जाने कितने दिन धूप में तप के 

तब कहीं जा कर उस के सर पर

छत आई हो 

इतना सब कर के भी मैं

रहता खुश नहीं 

क्योंकि मेरी कार और कोठी

मेरा आंतरिक सुख नहीं 

क़र्ज़ तो चूक जायेगा पर ये पल

फिर नहीं आएगा 


आओ सिखाऊँ तुम्हें जीवन के मंत्र चार 

जिससे होगा हम सब का उद्धार  

न लेना कभी कोई क़र्ज़ सिर्फ दिखावे के लिए

वरना उम्र लग जाएगी उसे चुकाने के लिए 

और कहते फिरोगे 

"उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन

दो उधार में कट गए दो वेतन के इंतज़ार में "

इसलिए दिखावे के जीवन का कर के बहिष्कार 

चलो मेरे यार, थोड़ा ज़िन्दगी का क़र्ज़ ले उतार  

जिसे जीना भूल गया मैं लेकर क़र्ज़ हज़ार

लेकर क़र्ज़ हज़ार, लेकर क़र्ज़ हज़ार


क्षमा प्रार्थना :- मैंने एक मशहूर शायर की

शायरी में तोड़ फोड़ कर उसे अपनी रचना में

उपयोग किया है उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।  


  


  







Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy