उड़ती पतंग के धागे
उड़ती पतंग के धागे


वह मासूम बचपन,
परिन्दा बन उड़ता फिरता
सपने थे छोटे छोटे पर
आकाश छूने का जज्बा रखता
रंग बिरंगे कागज से बना चक्री
मां की झाड़ू से ले तिनकी
बांध उसे, टेड़ा मेड़ा भाग
सुरर-सुरर हवा से दौड़ लगाता
आकाश को चिढ़ाता फिरता
हवा को भी थका जाता
पकड़ शाख पेड़ की हवा में झूला करता
(0, 0, 0);">कभी अटका चक्री उसमें
बादलों बीच आसमाँ को घुरा करता
मार फूंक हवा में चक्री जब घुमाता
बजा ताली पुलकित मन मेरा उछलता जाता
सोंधी सोंधी खुश्बू जिसमें थे पक्के इरादे
कंचे खनकते जेब में
हाथों में थे उड़ती पतंग के धागे
छलाँग मार संग साथी के
पोखर-नाले पार कर जाता
पाँव जमीं पर रहते पर हवा से बातें करता
वह मासूम बचपन परिन्दा बन उड़ता फिरता।