उड़ते उड़ते पूरे ही उड़ गए
उड़ते उड़ते पूरे ही उड़ गए
उड़ते उड़ते पूरे ही उड़ गए ।
ये बाल थे या छत पर बैठे हुए कबूतर ।।
कितनी रफ्तार से भागी जा रही है ये जिन्दगी
अभी अभी तो सोचने के लिए घुंघराले बालों में उँगलियाँ फिराते थे
अभी अभी तो माँ उनमें हाथ फिरा कर प्यार से समझाती थी
अभी अभी तो बच्चे थे हम
अभी अभी तो पापा गुस्से से इन्हें पकड कर झंझोड़ देते थे
अभी अभी तो बड़ी शान से इन्हे अपने प्यार की गलियों में लहराते थे
अभी अभी तो मोटर सायकल पर ये उड़े उड़े जाते थे ।।
नहीं बचा अब वो पहले सा जुल्फों का लहराना
नहीं बचा अब वो बेफिक्र मोहल्ले में धूम मचाना ।।
नहीं बची अब वो उनसे पहले सी यारीयां
नहीं बचा वो आँगन, वो क्यारियां ।
कुछ इस तेजी से भागी जिन्दगी की आलिशान गाड़ी ।
कि हमारी हर एक कामयाबी पर वो
हमसे थोड़ा सा बिछड़ गए ।।
उड़ते उड़ते पूरे ही उड़ गए...
अब अपनी कामयाबी की खुशी से ज्यादा
उनकी जुदाई का ग़म है ।।
ना जाने क्यूं हमसे रूठ कर वो
किन्हीं अनजान रास्तों पर मुड़ गए।।
उड़ते उड़ते पूरे ही उड़ गए ।
ये बाल थे या छत पर बैठे हुए कबूतर ।।।
