STORYMIRROR

Anjali Jha

Drama

3  

Anjali Jha

Drama

उड़ना चाहती हूँ

उड़ना चाहती हूँ

1 min
255

उड़ना चाहती हूँ खुले आसमान में 

लेकिन बंदिशों से जकड़ी हूँ।


अपना नाम बनाना चाहती हूँ 

लेकिन बदनामी में लटकी हूँ।


खूब लूटा समाज ने मुझको 

फिर भी घिसट- घिसट कर उभरी हूँ।


जान नहीं है इस जान में

फिर भी हौसला के लिए अटकी हूँ।


अंत में आ गया समझ मुझको

कोई नहीं है यहाँ मेरा

फिर क्यों घुट-घुट कर मरती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama