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Anjali Jha

Others

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Anjali Jha

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उड़ना चाहती हूँ

उड़ना चाहती हूँ

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उड़ना चाहती हूँ खुले आसमान में 

लेकिन बंदिशों से जकड़ी हूँ।

अपना नाम बनाना चाहती हूँ 

लेकिन बदनामों में लटकी हूँ।

खूब लूटा समाज ने मुझ को 

फिर भी घिसट- घिसट कर उभरी हूँ।


जान नहीं है इस जान में

फिर भी हौसला के लिए अटकी हूँ।

अंत में आ गया समझ मुझको

कोई नहीं है यहाँ मेरा

फिर क्यों घुट -घुट कर मरती हूँ।


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