उड़ना चाहती हूँ
उड़ना चाहती हूँ
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उड़ना चाहती हूँ खुले आसमान में
लेकिन बंदिशों से जकड़ी हूँ।
अपना नाम बनाना चाहती हूँ
लेकिन बदनामों में लटकी हूँ।
खूब लूटा समाज ने मुझ को
फिर भी घिसट- घिसट कर उभरी हूँ।
जान नहीं है इस जान में
फिर भी हौसला के लिए अटकी हूँ।
अंत में आ गया समझ मुझको
कोई नहीं है यहाँ मेरा
फिर क्यों घुट -घुट कर मरती हूँ।
