उड़ी पतंगें आसमान में
उड़ी पतंगें आसमान में
उड़ी पतंगें आसमान में।
कटी पतंगें आसमान में।
डोर पकड़कर मेरे मन ने,
भरी उड़ानें आसमान में।।
नीली, पीली, लाल पतंगें।
बहती जैसे हर -हर गंगे।
धरा-गगन के अंतराल में,
लहर रहा मन लिए उमंगे।।
इसकी कटी बची है उसकी।
आगे नंबर किसकी किसकी।
सोच रहा था मन ही मन मे।
मेरी कटी नज़र ज्यों खिसकी।।
लहराती जब नीचे को आई।
बच्चों ने फिर दौड़ लगाई।
फिर से बाँधी नई पतंग को,
आसमान में फिर फहराई।।
बच्चों ने आवाज़ लगाई।
देखो, देखो ओ फिर आई।
जोर जोर से चिल्लाकर के,
हौले हौले पतंग उड़ाई।।