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कुमार अविनाश केसर

Abstract

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कुमार अविनाश केसर

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तूने मुझे कैसे लिख दिया

तूने मुझे कैसे लिख दिया

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लोग कहते थे

कि

तुम...

पढ़ना लिखना नहीं जानती।

बस,

ढोर-पशुओं को...

देख सकती थी...

पाल सकती थी...

खिला-पिला सकती थी...

माँ!

तूने -

मुझे.....

कैसे लिख दिया!!

सोचता हूँ....

तुम -

मुझे....

जितना पढ़ सकी,

उतना...

कोई न पढ़ सका -

आज तक!

ईश्वर भी नहीं!!!!


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