तूही दरिया तू ही किनारा…!
तूही दरिया तू ही किनारा…!
तेरे प्यार में अब तो बस इंतहा होगी,
तेरे इश्क़ के दरिया में डूबे है तो ख़ुद पे गुमान ना कर,
तू ही दरिया तू ही कश्ती मेरी तुम्हारे बिना बह भी न पाऊंगी में...
तुमसे दूर जाऊं तो जाऊं कैसे तू प्यार मेरा इंतजार मेरा
उसकी छोटी छोटी बातें मुझे उसके करीब ले जाती थीं,
उससे मिलना जैसे खुद से मिलना सा लगता था...!,
कोई शिकवा तो नहीं ऐ जिंदगी तू मुझमें अब भी कहीं बाकि सी हैं, किसी ने कर दिया सीना छलनी मेरा अब न उस से कोई उम्मीद कहीं बाकि सी है, में अक्सर सोचती हूं तेरे मेरे बीच ये अनचाहा मोड़ क्यों आया अब तो ये चांद की चांदनी भी अधूरी अधूरी सी लगती है मुझको, ये इश्क़ का दरिया अब और गहराता चला गया और रह गई फिर अधूरी सी मोहब्बत!
दरिया के दो किनारे फिर से मिले,हाथों में लिए खत! आमने सामने थे चुप चाप बैठे,,,,ये सोचता तो तू भी होंगा,,,,में गुजर तो रही हूं,,,,पर कुछ रह जाऊँगी,,,,कुछ तुझे में ही दबा बसा कुछ रुका रुका सा पानी बनके तेरी आंखों में ही रह जाऊंगी,,,,और सुकून की तलाश में मैं सागर बन गंगा में मिल जाऊंगा,,,,,मेरी आंखों में देख रात आखरी और,,,,मुलाकात आखरी सी लगती है,,,, बरसते इश्क़ में,,,,, मैं तेरे संग कभी भीग ही ना सका,,,,, ख्वाहिशे अधूरी मोहब्बत अधूरी सी लगती है,,,,,कागज पे कलम
से तेरे नाम लिख लाए एक अधूरे इश्क़ की कहानी,,,,!!
