तू सफर और तू ही हमसफ
तू सफर और तू ही हमसफ
कागज .... अच्छा इश्क़ कर बैठे हो, तुम गजल से
पैन .... हां क्योंकि वो बिल्कुल गज़ल सी दिखती है,
कागज .... उफ ये तुम्हारी बातें...!
कागज .... ये सपनों की दुनियाँ से बाहर निकलो जनाब..!
पैन .... मोहब्बत में सपनो की दुनियाँ से निकलना कहा
आसान होता है..!
कागज .... वो बहोत सुंदर है..!
पैन .... एक रंग है, उसका एक सुंदर रूप है उसका
सब रंग के दीवाने हो गए और में उसके मन की
सुंदरता का कायल हो गया, क्या अब भी कहेंगे भूल
जाओ...!
पैन .... ये रिश्ता अब रिहाई नही देता मुझे...!
कागज .... तो तुम समझौता कर बैठे….!
पैन .... नही में तो लिखता हूं उसे हर रोज़ अपनी गीत
गजलों में, हर वक्त वो शामिल है, मुझमें तो समझौता
कैसे हुआ...!
कागज .... तुम बातें छिपाने लगे हो..…!
पैन .... बिल्कुल नहीं...!
कागज .... गजब है यार, ये प्यार इसमें न दिल दुआ लगे और न लगे दवा….!
पैन .... मेरी पहली मोहब्बत का पहला दर्द है, तुम पूछोगे नही मेरा पहला प्यार कौन है...!
कागज .... कौन है...?
पैन .... तुम हो, में तुम्हे लिखता हूं और तुम चुप चाप सुनती हो तुम्हीं को बताता हूं और तुम्ही से छुपाता हूं,
कागज .... आँखें नम हो गई और बोली ये तेरा मेरा लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप है, हम एक दूसरे से मिलते रहें और फिर मिलते रहें किसी तीसरे के सहारे...!
पैन .... मैं यूं ही तुमसे मिलता रहूंगा और तुम मुझसे...!
आख़िर इश्क़ किया है, अधूरा ही सही, पर जब जब मेरे होंठ तेरे माथे को चूमते है, मैं तुमसे मिलकर पूरा हो जाता हूं...!!
हां अधूरा है बहोत कुछ,,,,
बूंद बूंद भरी आँखो में
उसकी मोहब्बत को और फ़िर
महसूस किया उसकी यादों को
और फिर खुशबू की तरह
लब्ज़ मोती बनके बिखरते
गए और आंसू बनके मेरे शब्दों
को चूमते हुए और निखर गए…!
