अफ़सोस या सीख .…!
अफ़सोस या सीख .…!
वो जो पहले अजनबी से थे, अब उनसे
धीरे धीरे बातों का सिलसिला शुरू हो गया
फिर मुलाकातें होने लगी, फिर उनसे बातों
बातों में जैसे दिल ही हार बैठे, फिर शुरू हुआ
उनका ख्वाबों में आना जाना, धीरे धीरे मुलाकातें
बढ़ने लगी अब बातों बातों में तिरछी निगाहों से देख
लिया करते थे, एक दूसरे को पर दिल की बात
दोनों ही नहीं कहते थे उफ दिल की बात मन में
दबा के एक दूसरे से रोज बिछड़ते, एक दिन
दोस्तों के जोर देने पर मन बना लिया की अब
दिल की बात जुबां पर लाना ही होगा,
रोज की तरह बस स्टॉप पर खड़ा वो दीवाना अपनी,
दिलरुबा का करता इंतजार और सोचता ये,
वक्त तो जैसे थम ही गया है, "जनाब" वक्त
अपने अपनी रफ्तार से ठीक चल रहा है बस अब
आप ही बेसब्र हुए जा रहे हो, बस आती और चली जाती!
पर दिलरुबा नहीं आई, बिचारा दीवाना इंतजार कर के
अपने ऑफिस चला गया, रास्ते भर कॉल किया पर
दिलरुबा का नंबर था ऑफ़ न बात हुई न ही उलझन
ही हुई कम न लगता किसी काम में मन अब याद लगी
सताने दीवाने को, बीते लम्हों में दीवाना खो सा
गया और सोचता क्या करें मलाल किसी का,
साथ छूटने वाला था, छूट गया..
किस बात का करे अफसोस,
दिल टूटने वाला था, टूट गया...
हर मोहब्बत मुकम्मल नहीं होती "साहब"
कुछ अधूरी मोहब्बतें सीख देती है "जनाब"...!!