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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

तू/तुम

तू/तुम

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अक्स तेरा ही दिखता,

हर रूठने वाले में।

अब रुठों को,

मनाता हूं शिद्दत से।


काश! यूं तब कर लिया होता,

तू न जाता।

जाता, तो लौट आता।


मुंह भी फेर लिया मैंने,

नज़रों को  भी चुराया था।

कुछ कहने पास तू ,आया तो था।


चश्म सूखे न होंगे तेरे भी,

कुछ मैं भी बड़बड़ाया था।

इक उबाल सा,हलक तक  मेरे आया तो था।


रोका होता तुझे, हाथ पकड़ कर।

थामा  ही नहीं मैंने ,हाथ तूने बढ़ाया तो था।

हाथ तूने बढ़ाया तो था।



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