बढते चलो
बढते चलो
तू चल कि हजारों साल पुरानी कथा
आज भी है चल रही
समय के साथ ये राहें आगे को ही बढ़ रही
तू चल कि जो पीछे छूटा वो केवल इक भ्रम है
आगे अब बस केवल इक श्रम है
तू चल कि इस चंचल मन से ना होगा कोई वास्ता
आगे ही मिलेगा परमानंद का रास्ता
तू चल और खत्म कर इंतजार किसी चमत्कार का
कि अब ना कोई जादू है होनेवाला
तू चल कि तुझे पहननी है सम्मान की माला
रुकता है केवल हारने वाला
तू चल कि देखे तुझे गर्व से तुझे बनाने वाला
तू ही तो है कल को सवारने वाला
तू लड़ कि बिना लड़े ये लड़ाई खत्म ना होगी
अब बिना अड़े जीत की जश्न ना होगी
तू चल कि बिना चले कुछ हासिल ना होगा
रुकने से तो तू जाहिल ही होगा
तू चल कि तेरा हौसला है तूझे पुकारता
क्यूँ है तू अपने ही आकांक्षाओं को मारता
तू चल तू चल काले घने बादल को चीरता फाड़ता
ज्ञानवान ही है सबका जीवन संवारता
तू चल कि वो है बैठा जो है संसार तारता
क्यूँ खुद को ही है तू नकारता
तू ही है नासमझ वो तो है तूझे ही निहारता !