इंसानी नाते
इंसानी नाते
इंसान से इंसान का नाता ही क्या है,
इस दुनिया में कोई लेता या लाता ही क्या है।
क्यों उलझते हो बेफिज़ूल की रंजिशों में,
क्यों फसते हो अनचाही बंधिशों में।
आओ एक आसान सा तरीका बताती हूँ,
सबको ज़िन्दगी जीने का सलीका सिखाती हूँ।
जब भी एक दूसरे से मिलो,
पहले इंसानियत के साँचें में ढलो।
फिर जब मिलाप हो,
सिर्फ हम रहे, ना तुम हो ना आप हो।
बस दो लफ्ज़ तुम कहो, दो लफ्ज़ हम सुनें,
चादर प्रेम की इन प्रेम के धागों से बुने।
ओढ़ ले मिलकर इसे चाहे जो भी हो मौसम,
ज़िन्दगी की हिस्सेदारी यूँ ही निभाएँ,
और हँस हँस कट जाए ये जन्म l