मां की वेदना
मां की वेदना
दिल की वेदनाओ को यूं इस कदर झंझोड़ लिया
दिल को दस्तक देकर क्यूं फिर अंगारों में झोंक दिया
दिल में जकड़े जिस्म को क्यूं कांटों से पिरो दिया
कोख से जन्मी बेटी को मेरी
पीड़ा का हम सारथी क्यूं बना दिया।
क्यूं उसको बचपन में ही भोगी बना दिया
किस्मत का लिखा मै मां बन कर चुकाऊंगी
बेटी की मान इज्ज़त को दांव पर ना लगाउंगी
दिल में उतर गई पैदा होते ही बेटी मेरी परछाई।
यूं परछाई को लुप्त ना होने दूगी
मेरे वेदनायो से कोसों दूर कर दूंगी
मेरी ये ओढ़नी में लगे ख़ून के धब्बों को खुद ही मिटाती रहूंगी
बचपन की दहलीज को यूं ही नहीं लांघने दूंगी।
अकेली ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई का सामना करूंगी
मां बन कर उसको अपने आंचल में ढाक लूंगी
काले बादलों की परछाई भी ना लगने दूंगी
डगमगाती राहों पर खुद को कंकर चुभने दूंगी।
मेरी क़िस्मत में लिखें आरोपों को खुद ही महसूस करुंगी
अब बचपन की दहलीज लांघ बैठी है
मेरी बेटी मेरी हम राही बन रही है
मेरे अश्कों को अपने दिल के एहसासों से यूं पोंछ देती है।
मानो वो मेरी सांसें जीने लगी है
क्योंकि मां बेटी की सबसे अच्छी दोस्त बन जाती है
ख़ुशी गम वेदनाएं आरोपों के बवंडर में यूं खोती जा रही थी
हर्षिता की भूमिका सी किरण बनकर ज़िन्दगी में लाई थी।