वीर तुम
वीर तुम
बढ़े चलो बढ़े चलो
तुम शेर की दहाड़ हो
अटलता का पहाड़ हो
टूट तुम सकते नहीं
रुक तुम सकते नहीं
तो बढ़े चलो बढ़े चलो
प्रेम का तुम भाव हो
निश्छल सा स्वभाव हो
भटक तुम सकते नहीं
कदम थक सकते नहीं
तो बढ़े चलो बढ़े चलो
तलवार सी तुम धार हो
सशकत जहां विचार हो
भाव कभी थकते नहीं
अवसाद यहॉ टिक ते नही
तो बढ़े चलो बढ़े चलो
परिवर्तन स्वभाव है
रिश्तो में संभाव हो
तो कभी तुम थकना नहीं
कभी तुम रुकना नहीं
बढ़े चलो बढ़े चलो
वीर हो तुम धीर हो
भेदते लक्ष्य पर तीर हो
बदल दो आज तुम धरा
बना दो यह तुम सिलसिला
तो बढ़े चलो बढ़े चलो।