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संजय असवाल "नूतन"

Inspirational

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संजय असवाल "नूतन"

Inspirational

विद्रोह करो

विद्रोह करो

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ऐ लड़कियों,

उठो,

बाहर निकलो

विद्रोह करो इस समाज से,

कब तक सहती रहोगी?

कब तक जख्मों को खुद के ढकते रहोगी?

कब तक इस समाज के,

अहसानों तले दबी रहोगी?

कभी तो आवाज लगानी होगी,

कभी तो इन जुल्मों को बस कहना होगा,

ये समाज क्यों नियम बनाएं

तुम्हारे लिए?

जिस पर ये खुद नहीं चलते,

तोड़ दो अब उन बंदिशों को

जो घोटती है तुम्हारी सांसों को,

रोकती हैं तुम्हे आगे बढ़ने से,

तुम भी इंसान हो,

इसी समाज का हिस्सा हो,

तुम्हे भी दर्द होता है,

तुम्हारी भावनाएं भी आहत होती हैं,

तुम्हारे भी अरमान हैं,

फिर ये कुप्रथाएं, कुरीतियां,नियम, कानून

सिर्फ तुम्हारे लिए ही क्यों?

क्यों नहीं रोकते ये उन घूरती नजरों को

जो ऊपर से नीचे 

अंदर से बाहर तुम लड़कियों को 

छूते हैं अपनी दूषित नज़रों से,

क्यों ये समझते हैं

तुम्हे मात्र एक दोयम जो हाड़ मांस का बना है?

क्यों इनकी फब्तियां होती हैं 

सिर्फ तुम्हारे लिए?

क्यों ये तुम्हे रोकते हैं

टोकते हैं आते जाते?

क्यों ये तुम्हे छेड़ते हैं?

क्यों ये तुम्हारे हर काम में गलतियां ढूंढ़ते हैं?

क्यों तुम सिर्फ देह हो इनके लिए?

जिसे भोगते हैं ये अपनी ही मर्जी से,

जहां तहां जब मन करता है इनका,

अपनी वासना को तृप्त करने,

क्या तुम सिर्फ भोग हो?

ये घुटन लड़की होने का

महसूस किया मैंने,

क्या तुम भी महसूस करती हो?

हम सब ने झेला है ये दंश

कभी ना कभी,

तो चुप रहना

क्या जीना है?

बाहर तो निकालना होगा,

हम लड़कियां हैं तो चुप रहें,

ये अब नहीं होगा,

हम सबको जुड़ना होगा एक दूसरे से रूह तक,

तोड़ना होगा ये तिलिस्म इस भोगी समाज का,

होना होगा आजाद,

समाज कि इस गंदगी से,

यही सपना है मेरा,

तुम्हारा भी होना चाहिए,

हम साथ साथ रहें,

मेरा दर्द तेरा भी हो,

तभी पूरा होगा ये प्रण

इस कुत्सित समाज से

हमारा आजादी का,

हमारा जीवन सिर्फ हमारा हो,

हमे भी आजादी चाहिए इन आत्याचरों से,

भले वक्त लगेगा इसमें अभी बहुत,

पर दशकों की इस बीमारी को

दूर करने में पहल,

हमे ही करनी होगी,

मिल कर साथ साथ,

अंत तक.............।



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