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ANIRUDH PRAKASH

Abstract

4.5  

ANIRUDH PRAKASH

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Ghazal No.2 गिनाते रहे उम्र भर एक दूसरे के ऐब

Ghazal No.2 गिनाते रहे उम्र भर एक दूसरे के ऐब

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गिरफ़त-ए-इश्क़ से आज़ाद तू भी नहीं मैं भी नहीं 

हकीकत-ए-गुलामी को मानता तू भी नहीं मैं भी नहीं


साथ चलने की ज़मीं मिल भी सकती थी मगर 

अपनी अना के आसमां से उतरा तू भी नहीं मैं भी नहीं


गिनाते रहे उम्र भर एक दूसरे के ऐब 

रु-बा-रु-ए-आईना हुआ तू भी नहीं मैं भी नहीं


ना जाने क्यों लिए फिरते हैं मसनूई हँसी चेहरे पर 

जबकि ग़म-ए-हिज़्र से जुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं


इंसान हैं तो खता है शख़्सियत में शुमार 

गलतियों से परे तू भ

ी नहीं मैं भी नहीं


मेयार-ए-ग़म-ए-इश्क़ अब बढ़ता ही नहीं 

रातों को जागता अब तू भी नहीं मैं भी नहीं


लड़ते रहे आपस में अपने अपने रहनुमा के लिए 

यूँ तो एक दूसरे से खफा तू भी नहीं मैं भी नहीं


पहन तो लिया पैरहन दोनों ने तर्क-ए-इश्क़ का फिर भी 

खुशियों के बाजार में बिका तू भी नहीं मैं भी नहीं


ज़माने की साज़-बाज़ी ने कर दिया हमें लुत्फ़-ए-वस्ल से महरूम 

और सितम ये कि इन साजिशों से ना-वाक़िफ़ तू भी नहीं मैं भी नहीं




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