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Jai Prakash Pandey

Tragedy

3  

Jai Prakash Pandey

Tragedy

तुम्हें सलाम

तुम्हें सलाम

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दुखते कांधे पर

भोतरी कुल्हाड़ी लेकर 

   

पसीने से तर बतर

फटा ब्लाऊज पहनकर


बेतरतीब बहते 

हुए आंसुओं को पीकर


भूख से कराहते 

बच्चों को छोड़कर


जब एक आदिवासी 

महिला निकल पड़ती है 

जंगल की तरफ


कांधे में कुल्हाड़ी लेकर 

अंधे पति को अतृप्त छोड़कर


लिपटे चिपटे धूल भरे 

केशों को फ़ैलाकर


अधजले भूखे चूल्हे 

को लात मारकर


और इस हाल में भी 

खूब पानी पीकर


जब निकल पड़ती है 

जंगल की तरफ


फटी साड़ी की  

कांच लगाकर


दुनियादारी को 

हाशिये में रखकर


जीवन के अबूझ 

रहस्यों को छूकर


जंगल के कानून 

कायदों को साथ लेकर


अनमनी वह 

आदिवासी महिला


दौड़ पड़ती है 

जंगल की तरफ


पराये होने का

अहसास लिए 


आपने आप से पूछती 

फिर भी मैं पराई हूं 


जंगल से आवाज़ आती है 

पराई नहीं हो तुम जीवन हो 



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