तुम्हें दिल्लगी भूल जाने पड़ेगी....
तुम्हें दिल्लगी भूल जाने पड़ेगी....
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी,
मुहब्बत की राहों में आकर तो देखो
तड़पने पर मेरे ना फिर तुम हँसोगे,
कभी दिल किसी से लगाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
आसमान में आफताब और चाँद को भी देखा,
दोनों को बनते और मिटते भी देखा,
अकले होकर भी जमाने का ही कहलाता देखा,
कबतक जलोगे तुम यूही अकेले,
कभी अपनी बाहों में हमें जलाकर तो देखो
तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
यूं आँसू बहाकर खूद ही खूदको तोड़ देना,
नफरत में यूही खूदको जलाते रहना,
नहीं दर्द हैं यह जिद्द हैं तुम्हारी,
अच्छा नहीं यूँ बेदर्दी तुम्हारीं,
अगर मिटाने हैं तो बेशक मिटा दो,
मगर एक बार हमें अपनी जिद्द में बसाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
नजर अंदाज करके मेरे लफ्जों को,
सनम तुम भागोगे तो बेशक,
जहाँ जाओगे तुम हमें पाकर,
मूँह को अपना फेर भी लोगे बेशक,
कभी लड़खड़ा दो दिलबर तुम किसी महफिलो में,
मेरे लफ्जों से सहारा माँग कर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी।

