तुम्हें देखा
तुम्हें देखा
सुबह की किरण पहली
उतर धरा पर लहराई
मन को लुभाते इस बेला में
मुंडेर पर सनम तुम्हें देखा,
इक उमंग तुम ही
जीवन के हर रंग तुम ही
तरंग अंग अंग गाए
हसरत तुम में गुम हो जाए,
इक हसीन सी हँसी तुम्हारी
तुम संग बँधता है मन
उठी पलक गुनगुन कर
मन की बात ही तो
कह जाती हैं,
समझ लो जानम
साँस साँस की हर लेखा
तुम ही तुम हो,
मुंडेर पर सनम तुम्हें
आज खन खन खनकते देखा।।

