तुम्हें आना तो होगा
तुम्हें आना तो होगा
सुना है द्रौपदी की,
करुण पुकार,
जा टकराई थी,
द्वारिका के महल में,
और आ गये थे तुम,
वस्त्र बन,
लाज बचाने,
अधर्म की सभा में,
धर्म का मर्म समझाने।
आज हर सड़क,
हर मोड़ पर,
हर दिन,
लुटती अबलायें,
मासूम कलिकाएँ,
लगता है,
उनकी आहें,
नहीं पहुँचती,
तुम तक,
नहीं तो तुम जैसा,
न्याय प्रिय,
नारी सम्मान का रक्षक,
रुक पाता ?
नीति, स्वत्व, अपमान,
सभी का प्रतिफल,
महाभारत,
धर्मयुद्ध,
एक ओर धर्मराज,
गाण्डीवधारी अर्जुन,
दूसरी ओर,
शकुनि के कपटजाल में,
लिपटा दुर्योधन, दुशासन,
पुत्र मोहांध धृतराष्ट्र,
प्रतिज्ञा बद्ध भीष्म,
सेवा बद्ध द्रोण,
मैत्री बद्ध कर्ण।
आप भी तो थे,
एक ओर विशाल सेना,
दूसरी ओर निशस्त्र कृष्ण,
थाम रथ की डोर,
फूँक युद्ध का उद्घोष,
उबार,
युद्ध से विरत,
धनन्जय को,
देकर,
गीताज्ञान।
आज भी जरूरत है,
थाम कर बागडोर,
धर्मरथ की,
ले जाये जो,
समाज को सही राह पर,
रोक सके,
अत्याचारियों का आतंक,
तोड़ सके मौन,
अंध धृतराष्ट्र का,
करे संहार,
मानवता के दुश्मनों का,
बचा सके लुटती अस्मिता।
मिटे, अन्तर्द्वन्द्व,
जी सके सभी,
होकर निर्द्वन्द्व।