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Sarita Kumar

Romance

4  

Sarita Kumar

Romance

तुम्हारी वजह से

तुम्हारी वजह से

2 mins
314


मैंने तो यूं ही 

कहा था कि

तुम "मैं " बन जाना 

अगले जन्म में और 

मैं "तुम " बन जाऊंगी 

ताकि मैं समझ सकूंगी 

तुम्हारी मुश्किलें .......

दफ्तर का काम 

घर की जिम्मेदारियां 

मां और पत्नी के बीच का 

पेंडुलम ................

बच्चों की फरमाइश और पत्नी की ख्वाहिशें ....

रिश्तेदारों की उम्मीदें और समाज की मांग ....

और 

तुम लुत्फ उठाते 

पत्नी के गौरवशाली जीवन का 

सोने-चांदी के जेवरात का 

तरह-तरह के रेशमी परिधानों का 

बच्चों की पुकार "मां" "मां" 

भाभी , और बहुरानी जैसे मधुर संबोधनों से संबोधित होते ......

हर तीज त्योहारों पर सबसे पहले बधाईयां मिलती 

बच्चों के जन्मदिन पर भी तुम्हारे कपड़े खरीदें जातें 

और वो तमाम वैभव जो मुझे हासिल है उसका आनंद उठाते ...

मगर 

ये क्या उल्टा पुल्टा हो गया .....

मैं मैं ही रही और तुम "मैं " बन गये ....

हर रोज़ सुबह की चाय बनाते हो 

मुझे प्यार से जगाते हो पीठ दबाकर सहारा देकर उठाते हो 

रोटियां बेलते हो 

बाजार से सब कुछ लाते हो

और फिर लग जाते हो किचन में 

सामानों की सूची बनाते हो 

बैंक , एल आई सी , पोस्ट आफिस के चक्कर लगाते हो ....

तुमने मेरे हिस्से का सिर्फ दर्द , तकलीफें और परेशानियां ही ली है 

मैंने तो अपने हिस्से में आया सुख वैभव और गौरव का एहसास दिलाना चाहती थी । 

और तुम्हारे हिस्से की परेशानियों को जीना चाहती थी 

मुझे लगता था मैं तुम्हारी परेशानियों को भी सहजता से मैनेज कर लूंगी 

और तुम मेरे भोगे हुए सुखों को महसूस करो 

मगर तुम अपने हिस्से के तक़लिफों के बाद मेरे हिस्से के तक़लिफों को भी जिया है 

और 

मैं कल भी आनंदित थी और आज भी खुशहाल हूं 

सिर्फ तुम्हारी वजह से 

सिर्फ तुम्हारी वजह से।


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