तुम्हारा गुनहगार
तुम्हारा गुनहगार
मेरा गुनाह सिर्फ इतना था
तुम्हारी इजाजत बिना तुमसे प्रेम कर बैठा
जब जब नजरें उठाकर देखता तुमको
दिल में यही ख्याल उभरता हर बार
पहली मोहब्बत का इज़हार
करूं भी तो कैसे करूं
तुम तो बस मुस्कुराकर निकल जाती अपनी राह
और यहां दिल पर क्या गुजरती
तुम भला क्या जानो
पत्थर रखकर कलेजे पर
करता आने वाली घड़ी का इंतजार
कई दिन, कई हफ्ते, कई महीने
गुजार दिए इसी उम्मीद में
कभी तो वो पल आयेगा
जब इस दिल का दर्द भरा पैगाम
पहुंचेगा तुम्हारे दिल की धड़कनों तक
बस एक बार, सिर्फ एक बार
कभी झांको तो सही उन आंखों में
जिनको है आज भी तुम्हारे आने का इंतजार
गर ये गुनाह है
तो सजा भी जरूर होगी इस गुनाह की
मेरी नरम बांहों में सिमटकर
अपने गुनहगार को उसके गुनाह की सजा दो।