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HARISH KANDWAL

Romance

4  

HARISH KANDWAL

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तुम क्यों नहीं समझते

तुम क्यों नहीं समझते

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मेरी पलकों का बार बार तुमको देख के झुकना

मेरे हाथों का अनायास ही तुम्हारे हाथों को छूना

कुछ बोलते हुए अचानक से मेरा चुप हो जाना

हर बात पर तुम्हें अपनेपन का अहसास कराना।


उंगलियों से उंगलियों को यूं ही बार बार मोड़ना

बात बात पर तुमसे यूं ही झूठ मूठ का रूठना

तुम्हारे थोड़े से मनाने पर मेरा हर बार मान जाना

तुम्हारे एक इशारे पर, तुम्हारे साथ चले जाना।।


तुमसे हर बार अपनी हर दिल की बात बताना

तुमको अपने करीब रखने की हर कोशिश करना

किसी गैर के साथ तुमको देख मुझे गुस्सा आ जाना

चाहत का अहसास हर बात पर तुमको मेरा कराना।


घर जाते वक्त तुमको बार बार पीछे मुड़कर देखना

कभी अकेले में बीती बातों को याद कर मेरा हँसना

हर बात तुमको रोकने के लिये अपनी कसम देना

फिर भी तुम नहीं समझते तुमसे मोहब्बत का होना।



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