तुम कहां थे
तुम कहां थे
पतझड़ का मौसम था,
कुछ पेड़ों में पत्ते झडे़ थे,
कुछ में नए निकल रहे थे,
पर ,
तुम कहां थे....?
शहरों की चकाचौंध से,
मैं घर लौटी थी,
चांद भी निकलने को था,
पर,
तुम कहां थे.....?
तेरा इंतज़ार करके,
मेरे साथ,
वो रातें भी थकी थी,
सूरज निकलने को था....
पर,
तुम कहां थे...?