......फिर तुम बहुत याद आते हो
......फिर तुम बहुत याद आते हो
फिर तुम बहुत याद आते हो,
शहर की रौनक में कहीं गुम कर लेती हूँ खुद को,
जब लौट कर घर आती हूँ ,
फिर तुम बहुत याद आते हो,
आईने के सामने कभी बैठती हूँ ,
सज-संवर कर,
तारीफों के दो अल्फाज तुम्हारे सुनने को तरसती हूँ ,
फिर तुम बहुत याद आते हो,
थक कर कभी बैठ जाती हूँ ,
कोई नहीं होता जब सब्र देने को,
फिर तुम बहुत याद आते हो,
करवाचौथ के चांद मैं भी देखती हूँ ,
और तुम नहीं आते हो,
फिर तुम बहुत याद आते हो !!!

