"तुम कब बन पाए...?"
"तुम कब बन पाए...?"
माँग में भरकर
चुटकी भर सिन्दूर
बन गए तुम
मालिक एक अदद जिस्म के
चाहा जिससे तुमने
एक कठपुतली की तरह
नाचते रहना
तुम्हारे इशारों पर
तुम चलते रहे
अपने सफ़र पर
बिना रुके, बिना पीछे मुड़े
और वोअपने में अकेली
घसीटती रही ख़ुद को
तुम्हारे पीछे-पीछे
लेकिन कब तक ?
आख़िर रह गया
सिर्फ जिस्म तुम्हारे साथ
और रूह चल पड़ी
अनजान डगर
क्योंकि तुम बनकर
हमसफ़र(life-mate) भी
बन न पाए हमसफ़र(soul mate)।