तुम भी भीग जाते क्यों नहीं!
तुम भी भीग जाते क्यों नहीं!
ये मौसम आजकल बड़ा बेइमान है
मुझे इसका इरादा अच्छा नहीं लगता
अकेले भीगाना चाहता है मुझे जबकि
मुझे अकेले भीगना अच्छा नहीं लगता
पिछली दफा तुम्हें शिकायत थी मुझसे कि
सावन के मौसम में घर आतें क्यों नहीं
चलो इस बार पहली सावन की बारिश में
साथ मिलकर दोनों भीग जाते क्यों नहीं
तुम भी मजा भीग भीग कर लेना
मैं नियत से थोड़ा बहक जाऊंगा
तुम्हारी खुली जुल्फें और भीगे बदन को देख
मैं भी उन्हीं मिट्टी की तरह महक जाऊंगा
मेरा मन बहक रहा है सोच सोच कर
आखिरकार तुम भी मन को बहकाते क्यों नहीं
ये सावन की पहली बारिश हैं
चलों मिलकर दोनों भीग जाते क्यों नहीं
बारिश की बूंदें भी खुद ही कह रही है कि
अब तू और बेमतलब का इंतजार ना कर
सही वक़्त है यही अब भीग जाने का
यूँ खड़े खड़े सिर्फ उससे बात ना कर
बस क्या फिर महबूबा ने मुझे ऐसे जकड़ा
जैसा किसीने मुझे आजतक ना पकड़ा
सोचों की इसके आगे क्या हुआ होगा
अरे तुम खुद ही समझ जाते क्यों नहीं
और अब भी नासमझ बन रहे हो तो
तुम भी इस बारिश में भीग जाते क्यों नहीं!

