टंगोलीको घाव
टंगोलीको घाव
नष्ट भयेव जंगल
खाय टंगोलीको घाव।
मुर्ख मानुसला येन
आता देवच बचाव।।१।।
भयी धरनी गरम
सुर्य ओककर आग।
मर रह्या पशुपक्षी
देखो प्रकृतिको राग।।२।।
पक्षी पान धर चोच
देसे पिलाला वु छाव।
देखो मायको वात्सल्य
खुद लगायके दाव।।३।।
बुध्दिमान मानुस की
आय विकृत करनी।
मुका पशुपक्षी ईन्ला
आयी नसीब भरनी।।४।।
झाड़ काट काटकर
प्राणवायू भयो कम।
असो बिकट समय
मानुसको तुट दम।।५।।
झाड लगाओ सप्पाई
करो प्रकृति श्रृंगार।
सांग गोवर्धन सब
करो जीवन उध्दार।।६।।
