STORYMIRROR

Vivek Agarwal

Tragedy

4  

Vivek Agarwal

Tragedy

टीवी पर बहस

टीवी पर बहस

1 min
378


बहुत सालों बाद आज टीवी पर समाचार का चैनल लगाया। 

तो समाचारवाचक के साथ बीस और व्यक्तियों को वहाँ पाया।


अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग सुना रहे थे सभी। 

उच्च स्वरों में ऐसे अपशब्द बकते लोग न देखे सुने थे कभी। 


चर्चा का विषय था नये कृषि कानून को ले किसानों का क्रोध। 

एक साल से कुछ लोग कर रहे थे दिल्ली की सड़कों पर विरोध। 


पर बहस में दिख रहे थे स्वयंभू नेता और राजनीतिक प्रवक्ता। 

न कोई ज्ञान न कोई सार्थक तर्क मात्र भावुक नारों की निरर्थकता। 


अधजल गगरी छलकत जाय की कहावत को चरितार्थ करते हुये। 

अपने अपने स्वार्थों की पूर्ती हेतु एक दूसरे से टीवी पर लड़ते हुये। 


असली किसान तो मंडी दलाल और साहूकार का बंधुआ मजदूर है। 

जिसकी लाठी उसकी भैंस होगी इसके लिए तो दिल्ली अभी दूर है। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy