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Dr Narendra Kumar Patel

Abstract

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Dr Narendra Kumar Patel

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तस्वीरें

तस्वीरें

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तस्वीरें कितनी बना दी हमने

अपनी ही किताबों में

वह तस्वीर बनाऊं कैसे

आती है जो ख्वाबों में।

बना तो मैं वह भी सकता हूं

पर डरता है मेरा मन

कहीं खो ना जाए वो

मेरे ही किताबों में।

तस्वीरों की बात चले

तो बन जाती है आंखों में

फिर भी जाने ढूंढू क्यों

उसको मैं किताबों में ।

फूलों जैसी ना झुकता है

हिरनी जैसी आंखें हैं

वह तस्वीर बनाऊं कैसे

आती है जो ख़्वाबों में।



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