तरसन दरस तेरा
तरसन दरस तेरा
मैं न किसी की ना कोई मेरा
भटकूँ, तरसन दरस तेरा
बावरी कहे लोग भए पर
मोहे बावरा लगे जग सारा
भटकूँ, तरसन दरस तेरा
गयी नदियन के पास बुझन प्यास
वो बोली उसे सागर की आस
अब कित जाऊँ, कौन किनारा ?
भटकूँ, तरसन दरस तेरा
गयी बन में छाँव पाने
मनू बैठें उत बंजर कराने
अब कित जाऊँ, कौन सहारा ?
भटकूँ, तरसन दरस तेरा
गयी मंदिर माथा टेकत
साव पड़े वहाँ करुणा भाकत
अब कित जाऊँ, कौन बसेरा
भटकूँ, तरसन दरस तेरा
गयी फिर भवसागर तट
मिल्या न कोई नाव न खेवट
अब जाणू , जब होवे आप उजियारा
तब परम कहे, न तरस, मैं तेरा !

