तक़दीर
तक़दीर


वो निकली थी
घर से
तक़दीर बदलने अपनी
उसे क्या मालूम
राह में मिल जायेगे
भाग्य विधाता
जो उसे बदल देगे इतना कि
देखने सुनने वालों की
कांप जायेगी रूह तक
अब वो कहते है
न निकलो घर से
चलिए मान ली
बात आपकी
नहीं निकलेगे
घर से अपने
नहीं पार करेगें
मर्यादा
पर क्या तुम
घर को घर बनवा दोगे?