तो मेरा क्या कसूर
तो मेरा क्या कसूर
अगर मेरे तकदीर में
तेरा नाम हो,
तो मेरा क्या कसूर.
अगर मेरे हाथों की लकीरें
खिंची हे तेरी ओर,
तो मेरा क्या कसूर
नदी को सागर से
भँवरे को फूल से
भला, रोक पाता है कोई चाहकर !
लाख कोशिश के बाबजूद
कर दी रब ने दरखास्त मंजूर,
तो मेरा क्या कसूर।

