तजुर्बा
तजुर्बा
'तजुर्बा नहीं इतना की सलाह दे सके,
बस अपनी गलती से सीखा है सब,
कभी कभी ठोकर खाना जरुरी भी था,
ताकि, हाथ कौन बढ़ता है ये जान सके।
टांग खींचकर गिराने वाला बहोत करीबी था,
भरोसा भी था, उठकर जीतेंगे जरूर,
किसको बताते जाके, क्या दर्द लेके चले है !
जीत की ख़ुशी देखकर जलने वाला भी वही था।