तजुर्बा
तजुर्बा
किसी के साथ तुम, सपनों के नए नज़ारे देखोगे
दुबारा किसी को उस नजर से, मेरे बाद देखोगे
जब भुला दोगे दुनिया, उसी की आंखों में खोकर
तब मुड़ के बीते लम्हों को, तुम क्या ही देखोगे
दिल पे अपने उसी का, सुबह शाम राज रखोगे
प्यार से कोई अटपटा, उसका एक नाम रखोगे
और कर दोगे अपना नाम भी उसी के नाम
तब बीती सारी बातों का, नाम तुम भूल रखोगे
बंद आंखों से भी तुम, उसी का दीदार करोगे
खयालों में भी तुम, उसी की बाते करोगे
आबाद कर दोगे दिल के गुलशन, उसकी महक से
तब एक पुराने पौधे को, तुम पतझड़ के नाम करोगे
आंखों को उसकी आंखों से छूकर, दिल की बात कहोगे
उसकी छाया की रोशनी में, रात को भी दिन कहोगे
जब मिटा दोगे खुद को, उसकी जुल्फों की लिखावट में
तब गुजरे वक्त को तुम, वक्त की एक ठोकर कहोगे
उस बेमिसाल बारिश में भीग, पहली रिमझिम भुला दोगे
उस कंगन की खनक में, एक पायल की छम छम भुला दोगे
जब सजा दोगे मांग उसकी, प्रेम रंग की प्रीत से तुम
बन उसके माथे का कुमकुम, तुम गुलाल का रंग भुला दोगे
तब मोगरे की खुशबू को, गुलाब के रूप से बेहतर पाओगे
उसकी पलकों के साए तले, तुम अपना साया पाओगे
जब मिला दोगे मेल, अपने आज और बीते कल का
दुबारा पहली मोहब्बत को, एक तजुर्बे की तरह पाओगे।