तिरंगा
तिरंगा
उठे जब भी ये मेरा सर तिरंगा हो गगन मेरा,
पाप की नाशिनी पवन गंगा को नमन मेरा।
मेरे ईश्वर मेरे मौला तमन्ना एक है दिल मे,
मर जाऊ अगर जो मैं तिरंगा हो कफ़न मेरा।
जब टूटा कोई तारा तो मन्नत एक मागी है,
वतन की आबरू हरपल सलामत नेक मागी है।
ज़हर कितना भी दो तुम मगर मैं मर नहीं सकता,
मेरी माँ ने मेरी खातिर दुवायें अनेक मागी हैं।
तिरंगा देश का अपने कभी झुकने नहीं दूंगा,
कदम जो चल पडे आगे उन्हे रुकने नहीं दूंगा।
वतन पर जान दे दे कर ज़िन्होने ली है आजादी,
उन शहीदी आत्माओ को कभी दुखने नहीं दूंगा।
