था एक पंछी
था एक पंछी
था एक पंछी पिंजरे में बंद
थे उसके अनेक सपने
पंख फेलाना चाहता था
जीना चाहता था
जब भी उड़ने की कोशिश करता
उसके पंख काट दिए जाते
जी राहा था बस
मगर उम्मीद नही छोड़ी थी
ऊड़ना था उसे
तड़पता रोता गाता
पर कुछ नही कर पाता
फिर चुप हो जाता
बस उम्मीद थी की कब कोई
उसके पिंजरे का दरवाजा खोले
और वो ऊड़ जाए खुले आसमानो की और
पंख फेलाना चाहता था
जीना चाहता था
ऊड़ना चाहता था
ज़िन्दगी मे ऐसा मोड़ आया कि
पिंजरा खुला और वो
उड़ गया अपनी मंज़िल की और।
