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Renu kumari

Abstract

4.0  

Renu kumari

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तेरी बंदी से में तक का सफर

तेरी बंदी से में तक का सफर

2 mins
221



कल तक सब मुझे तेरी बंदी या तेरी दोस्त के नाम से जानते थे।

शायद कईयों को मेरा नाम भी मालूम न था।

तुझे गुमा था की में तेरे साथ नहीं तेरे पीछे खड़ी रहती थी।

हकीकत में न सही पर महफ़िलो में तो तूने मुझे अपना जरूरत बताया था।

सवाल तो लोगो के कुछ ऐसे रहते थे जैसे ,

तेरे संग न रहूं तो तेरी बंदी नहीं दिख रही ?

में अगर अकेले चलूँ तो वो देख तेरी बंदी जा रही है।

मेरी हर जीत का श्रेय भी हमेशा तुझे ही मिलता था।

इसलिए उस घमंड में चूर हो तू सबसे मिलता था।

तुझे सबकी वाह वाई पसंद थी और मुझे तू....

में हमेशा परदे के पीछे इसलिए रही ताकि,

तू मशहूर हो सके,तू आसमान छू सके।

में तुझमे खो सकूँ ,तू मुझमे खो सके।

तू हमेशा मेरी काबिलियत को कम-अंदाज़ करता गया।

और में तभी तेरी मोहब्बत बनी रही।

उस रोज़ जब उस राह पे मुझे अकेला छोड़ तू किसी और का हो चला था।

में भी तेरी बंदी से में हो चली थी।

सफर काफी मुश्किल था मगर नामुमकिन नहीं।

आज तक तो मेने खुद के लिए सोचा ही नहीं था।

हस्ता था तू जब अपनी मोहब्बत को अल्फाज़ो में पिरो तुझे सुनती थी में।

कैसे यकीं करती की अपनी मोहब्बत में खुदा से मिल कर आती थी में।

जिन कविताओं में अपना ज़िक्र सुन मेरा मजाक उडाता था।

आज उनपर बेशुमार तालियां बजती है।

महफ़िलो लोग मुझे अकेला देख अब सवाल नहीं करते ,

क्योंकी ये मोहब्बत में बर्बाद हुई शायरा अब कलमवाली कह कर जनि जाती है।


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