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nutan sharma

Fantasy

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nutan sharma

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तेरे बिना

तेरे बिना

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सांस कुछ अटक अटक के आती है अब तेरे बिना।

जैसे तुझसे दूर होकर रुक जाना चाहती हो ।


सावन भी बरसते हैं यूं तो, तेरे जाने के बाद।

लेकिन, आज भी बहार तेरे आने का रास्ता देखती है।


दिल धड़कता तो है आज भी तेरे बिना।

मगर धड़कन शायद रुक जाना चाहती है।


पतझड़ सी हो गई है जिन्दगी अब तो।

सूखी टहनियों से बस सररररर की आवाज़ आती है।


रास्ता तकते रहे और उम्र गुजरती रही।

जिन्दगी तू चाहती क्या है आखिर ये समझ आया नहीं।


वक्त फिसलता जा रहा है यूं रेत की तरह हाथों से।

थोड़ा, बस थोड़ा और रुके तो, मसला हल हो जाए शायद।


पढ़ना था जो फलसफा आधा, अधूरा रह गया।

पुस्तक भी कत्ल हो गई, कागज़ भी अकीबत हो गया।


वक्त कुछ यूं गुजरा तेरे जाने के बाद।

सुइयां टिक टिक करती रहीं घड़ी की ओर सफ़र थम गया। 



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